एक समय की बात है, एक शराब के व्यसनी व्यक्ति ने अपने घर की बिगड़ती स्थिति और बच्चों की भूख से दुखी होकर एक महात्मा के पास जाने का निश्चय किया। वह विनम्र स्वर में बोला,
“गुरुदेव, मैं शराब के इस व्यसन से परेशान हूँ। इससे मेरा परिवार बर्बाद हो रहा है। मेरे बच्चे भूखे हैं, और घर की शांति छिन गई है। कृपया कोई सरल उपाय बताइए जिससे मैं अपने घर को फिर से खुशहाल बना सकूँ।”
महात्मा ने शांतिपूर्ण स्वर में पूछा, “जब इस व्यसन से तुम्हें इतना नुकसान हो रहा है, तो इसे छोड़ क्यों नहीं देते?”
व्यक्ति ने सिर झुकाकर कहा, “गुरुदेव, मैं छोड़ना चाहता हूँ, पर यह मेरे खून में इतनी गहराई से समा गई है कि यह मुझे छोड़ने ही नहीं दे रही।”
महात्मा हँसते हुए बोले, “कल फिर आना, मैं तुम्हें बताऊँगा कि इसे कैसे छोड़ा जा सकता है।”
अगले दिन, वह व्यक्ति समय पर महात्मा के पास गया। महात्मा ने तुरंत उठकर एक खम्भे को कसकर पकड़ लिया। व्यक्ति कुछ समय तक चुपचाप खड़ा रहा, पर जब महात्मा खम्भे को नहीं छोड़ रहे, तो उसने पूछा,
“गुरुदेव, आपने व्यर्थ इस खम्भे को क्यों पकड़ रखा है?”
महात्मा गंभीर स्वर में बोले,
“बेटा, मैंने खम्भे को नहीं पकड़ा, यह खम्भा मुझे पकड़ रहा है। मैं चाहता हूँ कि यह मुझे छोड़ दे, पर यह छोड़ ही नहीं रहा।”
व्यक्ति चकित होकर बोला, “गुरुदेव, मैं शराब जरूर पीता हूँ, पर यह जानता हूँ कि यह निर्जीव है। यदि आप चाहें तो इसे अभी छोड़ सकते हैं। आपने इसे पकड़े रखा है, यह आपको कुछ नहीं कर सकता।”
महात्मा मुस्कराए और बोले,
“नादान मनुष्य! यही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ। जिस तरह मैंने खम्भे को पकड़े रखा था, वैसे ही तुमने शराब को पकड़ रखा है। तुम्हें लगता है कि शराब तुम्हें नहीं छोड़ रही, जबकि सच यह है कि तुम्हारे मन की दृढ़ इच्छा ही इसे पकड़ रही है। अगर तुम अपने मन में यह निश्चय कर लो कि अब मुझे यह व्यसन त्यागना है, तो तुम इसे उसी क्षण छोड़ सकते हो। शरीर की हर क्रिया मन द्वारा नियंत्रित होती है, और मन की शक्ति जितनी प्रबल होती है, कार्य उतना ही सफल होता है।”
व्यक्ति महात्मा की इस अमृतवाणी से अत्यंत प्रभावित हुआ। उसने उसी क्षण दृढ़ संकल्प किया कि भविष्य में कभी शराब नहीं पीएगा। उसके घर में शांति और खुशियाँ लौट आईं। वह जीवन को सुखपूर्वक जीने लगा।
कहानी की सीख:
जीवन में कोई भी व्यसन ऐसा नहीं है, जिसे मनुष्य छोड़ न सके। दृढ़ निश्चय और इच्छाशक्ति से बड़ी से बड़ी बुराई को भी त्यागा जा सकता है। हमारे कर्म और आदतें हमारी मानसिक दृढ़ता के अधीन हैं – और मन का संकल्प सबसे बड़ी शक्ति है।

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