"बेटी" एक मार्मिक कविता है जो समाज में बेटियों के महत्व, उनके संघर्षों, और उनके योगदान को उजागर करती है। इसे डॉ. सुर्यशंकर कुमार द्वारा लिखा गया है, जो एक प्रतिष्ठित फिजियोथेरेपिस्ट और समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। यह कविता न केवल बेटियों की वास्तविकता को दिखाती है, बल्कि समाज के उन पहलुओं पर भी सवाल उठाती है जो बेटियों के साथ भेदभाव करते हैं।
कविता: "बेटी"
यह कविता बेटियों की महानता को दर्शाते हुए उनके प्रति हो रहे अन्याय की कड़ी निंदा करती है। यह याद दिलाती है कि बेटियां दुर्गा, लक्ष्मी, और सरस्वती के रूप में हमारी प्रेरणा हैं। समाज के लिए उनका योगदान पुरुषों से कम नहीं, चाहे वह घर-परिवार हो, राष्ट्र हो, या कोई भी क्षेत्र।
समाज के लिए संदेश
कविता इस बात पर जोर देती है कि बेटियां हर क्षेत्र में अपनी जगह बना रही हैं—खेल, चिकित्सा, प्रशासन, और अंतरिक्ष तक। फिर भी, उनके साथ भेदभाव और अत्याचार क्यों? यह कविता एक स्पष्ट संदेश देती है कि बेटियां न केवल समाज की सौभाग्य हैं, बल्कि वे हर परिस्थिति में अपना अद्वितीय योगदान देती हैं।
लेखक के बारे में: डॉ. सुर्यशंकर कुमार
डॉ. सुर्यशंकर कुमार, जिन्हें प्यार से "सूर्य" कहा जाता है, पटना, भारत के एक जाने-माने फिजियोथेरेपिस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनके जीवन का उद्देश्य चिकित्सा और समाज सेवा के माध्यम से दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाना है। वे लेखन के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने और बदलाव लाने की गहरी इच्छा रखते हैं। उनकी कविता "बेटी" इस बात का प्रमाण है कि वे समाज में सुधार और समानता के लिए कितने समर्पित हैं।
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