जब भी रामायण की बात होती है, तो हमारा ध्यान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और रावण जैसे प्रमुख पात्रों पर जाता है। लेकिन इस महान ग्रंथ में कुछ ऐसे पात्र भी हैं, जिनकी भूमिका निर्णायक रही, फिर भी उन्हें इतिहास के पन्नों में पर्याप्त स्थान नहीं मिला। ऐसे ही एक पात्र हैं – रूमा, जिनका जीवन और सम्मान रामायण के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ों में से एक का कारण बना।
यह कहानी है एक स्त्री की, जिसे अपमानित किया गया, एक पत्नी की, जिसे उसके पति से छीन लिया गया, और एक नारी की, जिसके सम्मान की रक्षा के लिए भगवान राम ने न्याय का साथ दिया और इतिहास रच दिया।
रूमा का परिचय
रूमा वनवासी जाति की एक सुंदर, गुणी और पतिव्रता स्त्री थी। वह वानरराज सुग्रीव की पत्नी थीं। सुग्रीव, जो वानर साम्राज्य किष्किंधा का वास्तविक उत्तराधिकारी था, अपने भाई वालि द्वारा सत्ता से और अपनी पत्नी से भी वंचित कर दिया गया था।
रूमा, केवल एक पत्नी नहीं थी, वह सुग्रीव की शक्ति, उसका विश्वास और उसकी प्रेरणा थी। वह नारी शक्ति की प्रतीक थीं – शांत, सहनशील लेकिन न्याय के लिए दृढ़।
प्रेम और विवाह
रूमा और सुग्रीव का मिलन प्रेम से शुरू हुआ। कहते हैं कि दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे। रूमा का स्वभाव सौम्य था और वह अपने पति की सेवा में हमेशा तत्पर रहती थीं। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय चल रहा था, लेकिन जैसे ही सत्ता की लालसा ने वालि को अंधा कर दिया, सब कुछ बदल गया।
वालि का अन्याय और रूमा का अपहरण
वालि और सुग्रीव के बीच सत्ता को लेकर संघर्ष हुआ। एक बार जब वालि एक राक्षस का पीछा करते हुए एक गुफा में गया और काफी समय तक बाहर नहीं आया, तब सुग्रीव को लगा कि वह मर गया है। सुग्रीव ने गुफा का द्वार बंद कर दिया और किष्किंधा का राज्य संभाल लिया।
पर जब वालि जीवित लौट आया और सच्चाई जानने की बजाय सुग्रीव को विश्वासघाती समझ बैठा, तो उसने न केवल सुग्रीव को राज्य से निष्कासित कर दिया बल्कि रूमा को भी छीन लिया। यह एक स्त्री के आत्मसम्मान पर कुठाराघात था। वालि ने भाई के साथ-साथ एक पत्नी के अधिकारों को भी रौंद डाला।
रूमा का मौन विरोध
रूमा ने प्रत्यक्ष रूप से कोई विद्रोह नहीं किया, लेकिन उनके मौन ने सब कुछ कह दिया। वह सुग्रीव की प्रतीक्षा करती रहीं, उनका विश्वास बना रहा कि एक दिन न्याय अवश्य होगा। उनकी चुप्पी उस नारी शक्ति की प्रतीक है, जो अपमान सहती है लेकिन अन्याय को स्वीकार नहीं करती।
राम और सुग्रीव की मित्रता
जब भगवान राम वनवास के दौरान सीता की खोज में दक्षिण की ओर आए, तब उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव उस समय अपने भाई द्वारा निष्कासित होकर ऋष्यमूक पर्वत पर रह रहा था। उसने अपनी सारी व्यथा राम को सुनाई – कैसे उसके भाई ने उसे राज्य से निकाला, और उसकी पत्नी रूमा को बलपूर्वक अपने पास रख लिया।
राम ने सुग्रीव की पीड़ा सुनी और अन्याय को समझा। वह स्वयं अपनी पत्नी सीता को रावण द्वारा अपहृत किए जाने के दुःख से गुजर रहे थे, इसलिए रूमा की पीड़ा उन्हें भीतर तक छू गई। एक पत्नी का अपहरण, एक नारी का अपमान – यह दोनों घटनाएं राम के लिए केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि धर्म और न्याय का विषय बन गईं।
रूमा के सम्मान की रक्षा का संकल्प
राम ने सुग्रीव को वचन दिया कि वह उसका राज्य और पत्नी दोनों वापस दिलवाएंगे। यह कोई साधारण वादा नहीं था। यह वचन था न्याय का, एक स्त्री के अपमान के विरुद्ध आवाज़ उठाने का।
ऋष्यमूक पर्वत पर बैठी रूमा को शायद नहीं पता था कि अब उसकी प्रतीक्षा समाप्त होने वाली है। उसका आत्मसम्मान अब केवल एक नारी का नहीं, बल्कि धर्म के पक्ष की पहचान बन चुका था।
वालि वध: न्याय की स्थापना
राम और सुग्रीव ने योजना बनाई और सुग्रीव ने वालि को युद्ध के लिए ललकारा। राम ने छिपकर उस युद्ध को देखा और जैसे ही मौका मिला, उन्होंने वालि का वध कर दिया।
यह घटना रामायण के इतिहास में एक बड़ा मोड़ बन गई। राम का छिपकर बाण चलाना कई आलोचनाओं का कारण भी बना, लेकिन राम ने स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति अपने भाई की पत्नी को जबरन रखता है, वह अधर्मी है, और उसका वध धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक था।
वालि के मरने के बाद सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य लौटा, और सबसे महत्वपूर्ण – रूमा को सम्मान सहित वापस लाया गया।
रूमा की वापसी
जब रूमा सुग्रीव के पास लौटी, तो यह केवल एक पत्नी की घर वापसी नहीं थी। यह उस नारी की जीत थी, जो चुप रही, लेकिन टूटी नहीं। रामायण के इस अध्याय में रूमा की चुप्पी सबसे ऊँचा स्वर बनकर उभरी – जो कहता है कि “अन्याय के विरुद्ध कभी न कभी धर्म जरूर खड़ा होता है।”
नारी सम्मान की प्रतीक
रूमा का चरित्र यह बताता है कि रामायण केवल युद्ध, धर्म और राजनीति की कहानी नहीं है, बल्कि यह नारी सम्मान, अधिकार और संघर्ष की भी कथा है।
रामायण में सीता के त्याग और संघर्ष के बारे में सब जानते हैं, लेकिन रूमा की कहानी यह सिखाती है कि एक नारी का अपमान, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो, समाज को झकझोर देता है। और यदि न्याय की शक्ति साथ हो, तो नारी का सम्मान पुनः स्थापित किया जा सकता है।
उपसंहार
रूमा की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि नारी केवल प्रेम और सौंदर्य की मूर्ति नहीं है, बल्कि आत्मसम्मान और सहनशीलता की जीती-जागती मिसाल भी है। वालि के द्वारा किया गया अन्याय केवल एक भाई के साथ विश्वासघात नहीं था, बल्कि एक नारी के अधिकारों का हनन भी था।
और रामायण ने यह साबित कर दिया कि जब कोई स्त्री अपमानित होती है, तो स्वयं भगवान को भी न्याय के लिए आगे आना पड़ता है।
रूमा, एक अनसुना नाम सही, लेकिन उनका अपमान ही वह चिंगारी थी, जिसने न्याय की ज्वाला जलाई और धर्म की रक्षा के लिए भगवान को एक असाधारण कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
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